कहाँ बचा है वो युग पुराना ,कहाँ बाकि कोई अंश रहा !!
ना वज्रांग जैसा किसी में बल बचा ,
ना शिव जैसी कोई शक्ति है !
ना बचा पाया राधा जैसा प्रेम कोई ,
ना मीरा के जैसी कोई भक्ति है !
और नहीं बचे वो गुरु द्रोण यहां ,
ना अर्जून जैसे शिष्यों की कोई पंक्ति है !!
और कहाँ बचे है वो ,अस्त्र पुराने ,
कहाँ वो कोई विद्या शस्त्र की !
कहां बचा है वो रहना सहना,
कहाँ वो मर्यादा वस्त्र की !!
कहां है वो सीता जैसी नारी यहाँ !
कहां वो मर्यादा किसी में राम की !!
कहां है वो कान्हा जैसा प्रेम किसी में !
कहाँ वो गोपीया नंद गांव की !!
और कहाँ बचे वो मंदिर मस्जिद !
कहाँ वो माला हरि के नाम की !!
कहाँ बचा है वो विश्वाश यहां ,
कहाँ किसी से आश कोई !
कहाँ बचे है वो अपने यहां ,
कहाँ किसी का खाश कोई !!
नहीं बचे वो पहले जैसे सुर-ताल कोई ,
ना वो कोई मंगल गीत यहां !
ना बच पाए पुराने संबंध कोई ,
और ना वो कृष्ण-सुदामा जैसे मित यहां !!
नहीं बचा पाया उस युग का एक अंश कोई ,
ना बची वो पुरानी कोई रीत यहां !!
कहाँ बचा है वो विश्वाश यहां ,
कहाँ किसी से आश कोई !
कहाँ बचे है वो अपने यहां ,
कहाँ किसी का खाश कोई !!
नहीं बचे वो कोई लेख पुराने ,
ना कोई उनसा लिखारी यहां !!
नहीं बचे वो कलाकार पुराने
और ना उन जैसी कोई कलाकारी यहाँ
कहाँ बचे है वो खेल पुराने !
कहाँ वो खिलाडी यहाँ !!
नहीं बचे वो कोई वेद यहां !
ना उन जैसा कोई मलहम है
ओऱ ना बची वो स्याही दवात
ना खुद की जैसी कोई कलम है !!
बेहतरीन
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