कैसा शिक़वा किया मित्र की ,
दोस्ती को बदनाम कर गए ।
एक वो कृष्ण-सुदामा देखो ,
दोस्ती का जाहां में नाम कर गए ।।
ओर दोस्ती में तय हुआ था ,
सौदा जहां को ख़रीदने का ।
कमबख्त वो अपना ,
ज़मीर तक नीलम कर गए ।।
सुना है कि आज़ाद हुआ करते है ,
किस्से दोस्ती के ।
असल मे जज़्बात वो ,
अपने ग़ुलाम कर गए ।।
ओर सहन की है जिसने,
गद्दारी जो यारी में ।
अक़्सर मित्रता दिवस
पर वो ,
दूर से शलाम कर गए ।।
ओर क़लम से बनी है,
मुकेश पहचान ये तेरी ।
वो तो तुझे यूँ
,
बे-नाम कर गए।।
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