उन्हें वफ़ाई वाला ख़िताब चाहिए ।
में जो रोया था रातों में, मुझे उन रातों का हिसाब चाहिए।।
दूजा नशा ना था मुझे, सिवा उसके कोई ।
अब जो पिऊ शराब तो, उसका शबाब चाहिए ।।
फ़र्क नहीं पड़ता मुझे, वो गुप्तगु करती है किसी गैर से
मुझे तो मेरी उन मुलाकातों का हिंसाब चाहिए ।।
कांटो सा चुभ रहा था, उसे प्यार मेरा ।
अब रक़ीब को, इश्क़ में ग़ुलाब चाहिए।।
उसे देखा था एक रात, गैरों की गिरफ्त में ।
अब चेहरा छुपाने को, उन्हें नक़ाब चाहिए।।
अब चेहरा छुपाने को, उन्हें नक़ाब चाहिए।।
वो तेरी आँखों मे ना पढ़ पाई,मुकेश क़िस्सा सचाई का ।
अब क़लम से लिखी, उन्हें क़िताब चाहिए ।।
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