गुल को गुलशन, कली बहारों में भी देखी है बेहतरीन गजल !
मैने देखी है ।
गुल को गुलशन, कली बहारों में भी देखी है ।
मेने उसे कभी इस बाहों में कभी उस बाहों में भी देखी ।।
ना रही अब महक वो ना महकता सा दामन कोई ।
मैंने वो खुशबू कभी हवाओं में कभी फिजाओं में भी देखी है ।।
थोड़ा इम्तियाज़ रखकर चलना अपने और पराए का ।
मैंने हैवानियत कभी भुजाओं में कभी निगाहों में भी देखी है ।।
और मत दुखाया करो यू दिल किसी दुखिया का ,।
मेने असर कभी दुवाओं में कभी बद-दुवाओं में भी देखी है ।।
कैसे करू में एतबार इन फरेबी चाह वालों पर ।
मेने ये चाहत कभी बा-वफाओं में कभी बे-वफाओं में भी देखी है ।।
कैसे खुश हो जाऊ की वो सिर्फ अपना है ।
मेने ये अपनायत कभी पनहाओ में कभी दगाओ में भी देखी है ।।
Behad khoobsurat
ReplyDeleteBeautiful
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