Mere Ghar Ek Abla Nari Hindi Kavita ! अबला नारी
मेरे घर एक अबला है ।।
अपना धर्म निभाने के चक्कर में ,
अधिकार स्वयं भुलाया जाता है ।
स्त्री है तूं , सबसे यही सुन ,
फिर अंतर्मन को जगाया जाता है ।।
वो जो कुछ भी अच्छा बनाए ,
हमेशा वो बुरा बना दिया जाता है ।
हर एक बेहतर की कोशिश को ,
बस वहीं बिखेर दिया जाता है ।।
अरमान दबाकर जीने के ,
हर रोज पाठ पढ़ाये जाते है ।
फिर आधुनिकता से दूर कही ,
अतीत के ख्याल बताये जाते है ।।
ये मेरे घर नही, घर-घर में,
सुलगती एक ज्वाला है ।
नजर घुमाओ कहीं न कहीं ,
हर-घर में एक अबला हैं ।।
© खुद की कलम - तेरा लेख़क