रंग बदलते रहते है दर्द भरी उर्दू गजल ! Rang Badalte Rahte Hai Sad Urdu Gazal
रंग तो पते भी बदलते रहते है ।
जमी पे जो सूखे है, शाख पे वो हरे रहते है !!
मत कर गुमा की वो सिर्फ तेरा है !
यहाँ वक्त- बे वक्त रिश्ते बदलते रहते है !!
क्या हुआ जो एक शाख गिर गई टूटकर !
फूल रुख पर भी तो खिलते रहते है !!
चाहे कितनी कर लो कोशिशें रूह से रूह मिलाने की !
यहां अक्सर चहरे देख दिल मचलते रहते है !!
क्या हुआ जो हो ना पाया, जहाँ में अपना कोई !
बिन माली के बगीचे भी तो फलते-फुलते रहते है !
बेहतर है पाव काट लो गर कटे ना जंजीर गुलामी की !
स्वाधीन लड़खड़ाकर भी तो चलते रहते है !!
क्या हुआ जो वो रिश्ता तोड़ कर चला गया !
लोग बिखरे हुए भी तो सम्भलते रहते है !!
मत लगाओ बस्ती में आग, इस महजबी तिल्ली से !
शमा के साथ परवाने भी तो जलते रहते है !!
खुद की क़लम
बस्ती में आग शायरी गजल
मत कर गुमा शायरी गजल
रिश्ता तोड़ कर चला गया शायरी
शमा के साथ परवाने गजल उर्दू
वक्त- बे वक्त उर्दू गजल
जंजीर गुलामी की गजल शायरी