जरा भी नहीं , कुछ भी नहीं पर उर्दू गजल शेर शायरी - Kuchh Bhi Na Hone Par Gajal Shayari Hindi Mein
जरा भी नहीं | Jara Bhi Nahi
ये झुठी यादें अब जरा भी अच्छी नहीं लगती |
अब तो वो मुलाकाते जरा भी सच्ची नहीं लगती ||
में पढ़ लेता हु बख़ूबी ये जोम इन अमीरों का |
सोची थी बाते वो अब जरा भी कच्ची नहीं लगती ||
और समझता रहा में जिन्हें नादानी गीले-शिखवे ।
अब तो वो हरकतें जरा भी बच्ची नहीं लगती ||
देखता करता था जब दोनो की परछाई एक ।।
अब तो वो तस्वीर जरा भी जची नही लगती ।।
जरा भी है गजल , शायरी हिंदी में
Jara bhi Nahi Urdu Gaja Shayari hindi mein
ye jhuthee yaaden ab jara bhee achchhee nahin lagatee |
ab to vo mulaakaate jara bhee sachchee nahin lagatee ||
mein padh leta hu bakhoobee ye jom in ameeron ka |
sochee thee baate vo ab jara bhee kachchee nahin lagatee ||
aur samajhata raha mein jinhen naadaanee geele-shikhave
. ab to vo harakaten jara bhee bachchee nahin lagatee ||
dekhata karata tha jab dono kee parachhaee ek |
ab to vo tasveer jara bhee jachee nahee lagatee .
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